अपने परिवार के राजनैतिक राह का फैसला सोनिया-राहुल गांधी के द्वारा करने का दावा करने वाले प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी के लोकसभा चुनाव नहीं लडऩे की घोषणा कर कांग्रेस की राजनीति में एक बार फिर हलचल मचा दी है।
नये प्रदेशाध्यक्ष भूपेश बघेल की ताजपोशी की खबर के साथ ही आये अजीत जोगी के इस फैसले के मायने आसानी से इसलिए भी लगाये जा रहे है क्योंकि भूपेश बघेल को धुर जोगी विरोधी माना जाता है। विधानसभा चुनाव की टिकिट को लेकर अजीत जोगी के तेवर किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में भूपेश बघेल के पदभार ग्रहण और उससे पहले स्वागत के कार्यक्रम से जोगी परिवार की दूरी ही चर्चा का विषय नहीं है बल्कि चर्चा का विषय तो उनके लिए आसानी से उपलब्ध सरकारी विमान भी है। इस बात में जरा भी संदेह नहीं है कि छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी राजनीति में जोगी के मुकाबले कोई नेता नहीं है और यही वजह है कि अब लोग मजाक में भी यह करने लगे हैं कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता में वापसी तब तक नहीं होगी जब तक अमित जोगी मुख्यमंत्री पद के लिए तैयार नहीं हो जाते। इस मजाक के मायने आसानी से लगाये जा सकते हैं। लेकिन पिछले तीन चुनाव में कांग्रेस की हार की जितनी भी समीक्षा हुई उसमें अजीत जोगी चर्चा के केन्द्र में रहे हैं। विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव कांग्रेस को जिस तरह से हार का मुंह देखना पड़ रहा है उसमें गुटबाजी ही प्रमुख वजह रही है और लगता है कांग्रेस के दिग्गज माने जाने वाले नेता लगातार पराजय के बाद भी सबक लेने को तैयार नहीं है। अजीत जोगी के प्रभाव वाले आरक्षित सीटों में कांग्रेस की हार को लेकर जिस तरह से जोगी निशाने में है उसके बाद भी अब कांग्रेस उसकी परवाह करे यह संभव नहीं दिख रहा है और यही वजह है कि प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की। खबर से अजीत जोगी भले ही एतराज नहीं कर पाये लेकिन चुनाव नहींं लडऩे की घोषणा नाखुशी जाहिर करने का माध्यम माना जा रहा है।
सत्ता में वापसी की आस में बैठी कांग्रेस के लिए चुनाव परिणाम जितना दुखद माना जा रहा है उससे ज्यादा परिणाम को लेकर आ रही खबरें दुखद है। पार्टी के ही नेताओं के द्वारा जिस पैमाने पर भीतरघात हुआ उससे तो इस तरह के परिणाम पहले से ही तय थे। अजीत जोगी ने चुनाव नहीं लडऩे की घोषणा का भले ही जो कारण बताये हो पर सच तो यही है कि यह एक तरह का गुस्से के सिवाय कुछ नही है जो दबाव की राजनीति का हिस्सा माना जाता है अब देखना है कि वे सरकारी विमान के सफर पर ज्यादा यकीन करते हैं या हाईकमान के निर्णय का...।
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