छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान जिस आनन फानन में भूपेश बघेल को सौंपा गया वह हतप्रभ कर देने वाला है। चुपचाप हुए इस बदलाव को लेकर राजनैतिक अटकलें जोरों पर है। गुपचुप हुए इस बदलाव से साफ है कि अब कांग्रेस की राजनीति अपने पुराने ढर्रे से अलग समय के साथ चलने को कोशिश में है।
दो हजार तीन के चुनाव में सत्ता जाने के बाद प्रदेश कांग्रेस की राजनीति मोतीलाल वोरा के अनरूप चल रही थी। अजीत जोगी के विरोध और मोतीलाल वोरा के समर्थन के बीच कांग्रेस के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं में आपाधायी रही। तमाम जोगी विरोधियों की एका भी यहां कुछ नहीं कर पा रहे थे तो इसकी वजह सत्ता का वह गोपनीय सुख भी रहा है जो रमन सरकार से गाहे-बगाहे मिलने लगा था।
लगातार पराजय से कांग्रेस के कार्यकर्ता हताश और निराश होने लगे थे तभी नंदकुमार पटेल की नियुक्ति ने नई जान फूंकने की कोशिश तो की लेकिन यह अंजाम तक नहीं पहुंच सका नक्सली हमले के बाद आई रिक्तता को भरने चरण दास महंत को अध्यक्ष तो बना दिया गया लेकिन उनकी नियुक्ति के साथ ही अपना संदेह जब विधानसभा चुनाव में सच साबित हुआ तब जब महंत का हटना तय माना तो जा रहा था लेकिन इसकी जगह में भूपेश बघेल की नियुक्ति हो जायेगी यह किसी ने नहीं सोचा था।
भूपेश बघेल आम तौर पर जोशिले नेता माने जाते है और कहा यह भी जाता है कि वे अपने जोश में यह भी भूल जाते है कि उनके कार्यों का फायदा भले ही पार्टी को मिले लेकिन उनका अपना नुकसान हो सकता है।
यही वजह है कि सीधा हमला बोलने में माहिर भूपेश बघेल को नेतृत्व देने से कांग्रेस बचते रही है। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान यात्रा हो या झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं की हत्या के बाद रमन सिंह द्वारा ब्रम्हास्त्र चला देने का बोल हो पार्टी के दूसरे नेता असहज होते रहे है। लेकिन बघेल ने कभी इसकी परवाह नहीं की कि उनके बोल से उनका अहित हो सकता है।
यही वजह है कि वे किसी गुर विशेष से परे राजनीति करते रहे। भूपेश बघेल को वर्तमान राजनीति में भले ही जोगी विरोधी माना जाता रहा हो पर सच तो यह है कि वे विरोध की राजनीति पर भरोसा नहीं करते। यही वजह है कि तत्काल प्रतिक्रिया देने में माहिर भूपेश की नियुक्ति पर अजीत जोगी ने भी प्रशंसा की। पिछले दस सालों में सत्ता से सेटिंग कर कांग्रेस की राजनीति करने वाले भले ही इस नियुक्ति पर खुश न हो लेकिन एक आम कांग्रेसी खुश है कि छत्तीसगढ़ में अब कांग्रेस को बेचा नहीं जायेगा और लोकसभा चुनाव में बेहतर परिणाम आयेगा। राजनीति के समझदारों का यह भी कहना है कि भूपेश बघेल में ही वह ताकत है जो खेमेबाजी को साध सकते है।
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