शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

तेजपाल के बहाने...


इस पत्रकारिता पर एक और धब्बा कहें या क्या कहें, पर पत्रकारिता को लेकर पिछले दशक भर से चल रही चर्चा में तहलका के संपादक तरूण तेजपाल कांड ने इस मिशन को फिर घेरे में लिया है।
तरूण तेजपाल ने जिस तरह की पत्रकारिता की थी उसमें का यह नि:संदेह निदंनीय है। जो लोग समाज में आईना है इन दिनों उन पर सबकी निगाह है ऐसे में उनके चरित्र और व्यवहार में नैतिकता होनी ही चाहिए।
छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का अपना एक इतिहास है। माधव राव सप्रे से लेकर ऐसे कितने ही नाम है जो पत्रकारिता की स्वच्छता के लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं। जिनका ध्येय सिर्फ लोगों तक खबरें परोसना ही नहीं है बल्कि समाज को कुरुतियों को दूर भगाना भी है। तरूण तेजपाल के मामले में भी न्याय होगा लेकिन हम उम्मीद करते है कि छत्तीसगढ़ में बैठे बड़े अखबार समूह पत्रकारिता को लेकर न केवल गंभीर होंगे बल्कि इसे कलंकित होने के किसी भी खबरों से दूर रखेंगे।
यह सच है कि बड़े बड़े समूहों ने सरकारी सुविधा जुटाने तिकड़म किया हो। सरकारी विज्ञापनों के लिए सरकार की तिमारदारी की हो पर छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता आज भी गौरवशाली है तो इसकी वजह यहां के पत्रकार है जिन्होंने तमाम अवरोधों के बाद भी खबरों से समझौता नहीं किया। ताकत पर नौकरशाह और ताकतवर सरकार के खिलाफ लिखने से गुरेज नहीं किया और यह आगे भी जारी रहेगा।
छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में भी महिला पत्रकारों की कमी नहीं रही है। शशि परगनिहा, रत्ना वर्मा से लेकर ऐसे कितने ही नाम है जिन्होंने समय समय पर अपनी खबरो से हलचल मचाई है और अब तो प्राय: हर अखबार व न्यूज चैनलों के दफ्तरों में महिला पत्रकार देखे जा सकते हैं। उन पर दबाव का अंदेशा भी होता है। ऐसे में शोमा चौधरी, जैसे तेजपाल के सहयोगियों की भी कमी नहीं होगी लेकिन इस सबके बाद भी प्रबंधन को तय करना होगा कि वह ऐसी घटना पर सतर्क रहे ताकि पत्रकारिता पर कोई आंच न आये।
जिस तरह से अखबार समूह को अधिकाधिक धन कमाने की लालसा है कैसा ही आम लोगों की उम्मीद भी बढ़ी हुई है और आज का युवा तो सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल कर खबरों का खुलासा कर ही देता है इसलिए बेवजह खबरें छुपाकर स्वयं को बदनाम करने की प्रवृत्ति से भी बचना चाहिए। तहलका के तरूण तेजपाल ने जिस तेजी से अपनी जगह बनाई थी उतनी तेजी सभी चाहते है पर यह ध्यान रहे कि आप जब सबका आईना बनते हो तो आईने में दाग का भी ध्यान रखे क्योंकि नैतिकता की दुहाई तभी अच्छी लगती है जब आप स्वयं नैतिकता पर चल रहे है। अन्यथा तरूण तेजपाल बनने में समय नहीं लगता।

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