शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

लोकपाल तो पहले ही पास हो गया था...


एक समाजवादी नेता मुलायम सिंह को छोड़ सभी ने 46 साल से चली आ रही मांग को संसद के दोनों सदनों में झटके से पास कर अपनी पीठ थपथपाने में लगे हैं। मानों वे देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रति न केवल चिंतित है बल्कि वे इसका समूल नाश करने की ईच्छा रखते हैं। पर क्या सच यही हैं और यह सच है तब इसे इतने साल क्यों लगे। वास्तव में सच तो यह है कि लोकपाल बिल तो उसी दिन पास हो गया था। जब अन्ना हजारे के अनशन में पूरी देश लोकपाल के लिए खड़ा हो गया था। जनप्रतिनिधियों ने तो जनता के दबाव में केवल औपचारिकता निभाई है। हम पहले भी इसी जगह पर लिखते रहे हैं कि जनमत को नजर अंदाज कर न तो सरकार अपना भला कर सकती है और न ही इससे लोकतंत्र का ही भला होना है। सत्ता और बहुमत के दम पर इमरजेंसी तो लगाया जा सकता है लेकिन कुर्सी हासिल नहीं हो सकती है और यह देश इस बात की गवाह है।  सत्ता हासिल करने राजनीतिक दल वोट बैंक के खेल में सामाजिक-धार्मिक ध्रुवीकरण तक सत्ता तक पहुंच तो सकते हैं लेकिन यह खेल लंबा नहीं चलता। इस देश ने ऐसे किसी भी ध्रुवीकरण को कभी तरजीह नहीं देती। गंगा जमुनी संस्कृति पर प्रहार न तो कभी बर्दाश्त हुआ है और न ही बर्दाश्त किया जायेगा। लोकतंत्र को खंडित करते वोट बैंक की राजनीति पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे आज तो 46 साल के लम्बे इंतजार के बाद पास हुए लोकपाल पर ही चर्चा होनी चाहिए। आखिर एक झटके में लोकपाल बिल पारित करने की जरूरत तमाम राजनैतिक दलों को क्यों आन पड़ी। यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब अन्ना हजारे और केजरीवाल तक पहुंचता है। चार राज्यों के चुनाव परिणाम ने कांग्रेस को जितना सांसत में डाला उससे कहीं अधिक भाजपा को दिल्ली के नतीजे के सांसत में डाल दिया है।
सच तो यह है कि लोकपाल को लेकर अन्ना हजारे के आंदोलन की उपज आम आदमी पार्टी से भाजपा की बेचैनी बड़ गई है। भले ही यह बात मजाक में कही जा रही हो कि अन्ना हजारे ने अनशन में बैठने के बाद इसी सत्र में लोकपाल बिल पास कराने की जो चिट्ठी सोनिया गांधी और राजनाथ सिंह को भेजी थी उसके साथ अलग से एक पर्ची भी थी कि यदि इस सत्र में बिल पास न हुआ तो अभी तो एक केजरीवाल से परेशान हो और भी केजरीवाल खड़ा कर दूंगा।  सच तो यही है कि शीत सत्र में लोकपाल बिल पास करने की जल्दबाजी और एक जुटता भी इसी मजाक के हकीकत के आस पास ही है। आज लोग भ्रष्टाचार से त्रस्त है। अपने हिस्से का विकास पीडिय़ों के लिए जमा करते नेताओं और नौकरशाहों को देखकर वे आक्रोशित हैं लोकपाल बिल से इन पर अंकुश लगेगा और सभी पार्टियों में ईमानदार लोगों का महत्व बढ़ेगा इसी उम्मीद के साथ...।

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