भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष शिवदयाल सिंह तोमर की हत्या करने वाले नक्सलियों में से एक लिंगा उर्फ विजय ने दावा किया है कि वे दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी के न केवल रिश्ते में भांजा है बल्कि वे विधायक से कई बार मिल चुके हैं। हालांकि विधायक ने रिश्तेदारी से इंकार किया है लेकिन इस तरह के आरोप प्रदेश सरकार के मंत्री हम विक्रय उसेंडी और सुश्री लता उसेंडी पर लगते रहे हैं। नक्सलियों को लेकर भाजपा सरकार पर भी सांठगांठ का आरोप नया नहीं है।
बस्तर के 12 सीट में से 11 सीट पर जीत फतह कर दो बार सत्ता में पहुंची भाजपा पर नक्सली सांठ गांठ का आरोप कांग्रेस प्रांरभ से ही लगाते रही है और झीरम घाटी में दिग्गज कांग्रेस वीसी शुक्ल, नंदकुमार पटेल की नक्सली हत्या पर तो कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने मुखिया के ब्रम्हास्त्र छोड़े जाने तक की बात कह दी थी।
छत्तीसगढ़ के 18 जिले नक्सलियों से प्रभावित है और हाल के सालों में नक्सली घटना में तेजी आई है। तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन की रिहाई को लेकर हुई सौदेबाजी से सरकार पर गंभीर आरोप लगे हैं।
ऐसा नहीं है कि आरोपों के जद में सिर्फ भाजपा और उसके नेता ही है बल्कि कांग्रेस पर तो नक्सली आन्दोलन को फलने-फूलने का अवसर देने का आरोप भाजपा लगाते रही है। बढ़ते नक्सली बरदात पर भाजपा सरकार असहाय है और वह सारा ठिकरा कांग्रेस पर मढ़ते रही है।
सच तो यह है कि हाल के वर्षों में नक्सली वारदातों में तेजी आई है बस्तर में लगभग पांच सौ गांव उजड़ गये है और यहां रहने वाले हजारों लोग किश्विर में रहने मजबूर है। लेकिन सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ कभी बड़ी कार्रवाई की हिम्मत नहीं दिखाई।
बस्तर में पुलिस हताशा की ओर है। राजनैतिक दबाव में पुलिस कार्रवाई नहीं कर पा रही है और नक्सलियों के खिलाफ आन्दोलन कबड़ा करने वालों का सरकार ने भी साथ नहीं दिया। सलवा जुडूम आन्दोलन की असमय मौत से रमन सरकार कटघरे में है। ऐसे में यदि यह चर्चा वोटों पर है कि बस्तर में बगैर नक्सलियों से संबंध बनाये कोई नेता गिरी नही कर सकता तो यह सरकार के लिए ही नही राजनैतिक दलों के लिए भी न केवल चुनौति है बल्कि आम आदमी के लिए गंभीर बात है।
हम यहां रमन सरकार के नक्सली मोर्चे पर कई नाकामी की चर्चा नहीं करना चाहते हम तो सिर्फ यहां नक्सलियों से नेताओं के बढ़ते संबंधों पर ही चिंता जाहिर करना चाहते है। राजनीति में सत्ता के लिए अपराधियों का सहारा लेने की वजह से आज विधानसभा और संसद की पवित्रता पर ग्रहण लग चुका है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर राजनैतिक दलों ने जिस एका से अपराध की नई परिभाषा गढ़ी है वह न केवल शर्मसार करने वाला है बल्कि स्वेच्छाचारिता का शर्मनाक उदाहरण भी है।
आज एक आम आदमी अपनी सुरक्षा के लिए बढ़ते अपराध से स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहा हो तब भला सरकार या राजनैतिक दलों के द्वारा समाज या देश विरोधियों से संबंध रखना निंदनीय ही नहीं शर्मसार करने वाला है। हम ऐसे किसी भी संबंधो के खिलाफ है जो आम आदमी के हितों पर कुढाराघात करता हो।
विधायक भीमा मंडावी की रिश्तेदारी या मेल मुलाकात की सरकार को ही उच्च स्तरीय जांच करानी चाहिए अन्यथा नक्सली बढ़ते रहेंगे और लोग भेड़ बकरी की तरह कटते रहेंगे।
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