सोमवार, 30 सितंबर 2013

पुलिसिया मनमानी पर सरकार की चुप्पी..!


छत्तीसगढ़ में पुलिस की मनमानी पर सरकार की नहीं चलती, शराब ठेकेदार, माफिया और राजनैतिक दबाव की आड़ में पुलिस कानून का मजाक बना रही है और गृह मंत्री ननकी राम कंवर कार्रवाई की बजाय बतोले बाजी में लगे हैं। मुख्यमंत्री से लेकर राजधानी के दो-दो मंत्रियों के रहते थानेदारों की करतूत चरम पर है7 आम लोगों का जीना दूभर होने लगा हे और अपराधिक तत्वों के हौसले बुलंद है।
दहेज मामले में बिना काऊसिंलिग के सीधे एफ आई आर दर्ज करने थाने में बिढाने के मामले में जब एएसपी श्वेता सिन्हा कहती है कि पुलिस के पास अधिकार है तो समझा जा सकता है कि वह क कहना चाह रही है।
ऐसा नहीं है कि पुलिसिया करतूत का यह पहला मामला है। पंडरी, मोवा, से लेकर गुढिय़ारी उरला तक पुलिस वालों का यही हाल है वर्दी के धौंस से आम आदमी का खून चूसने की कोशिश में लगी राजधानी पुलिस पर रिपोर्ट कर्ताओं से बदसलूकी, अपराधियों से सांठ-गांठ के ढेरो मामले हैं।
छत्तीसगढ़ पुलिस के बारे में गृहमंत्री ननकीराम कंवर का विधानसभा में यह कहना कि दस-दस हजार रूपये में शराब ठेकेदारों के हाथों थाने बिक रहे हैं समझा जा सकताह ै कि भाजपा राज का यह केसा सुराज है। गृहमंत्री ने एस पी को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल तक का तमगा दिया है।
लेकिन प्रदेश के कथित साफ छवि वाले मुखिया को यह सब नहीं दिखता। नहीं दिखता तो शहर के मंत्रियों और जनप्रतिनिधि को भी लेकिन कोई कुछ नहीं कह रहा है।
जैनमूर्ति चोरी कांड हो या डाल्फिन स्कूल के संचालक राजेश शर्मा, सदर के सेठ मन्नू नत्थानी का मामला हो या मौदाहापारा में पुलिस वालों की भरपुर पिटाईका मामला हो। जनप्रतिनिधियों को कुछ नहीं दिखता। त्यौहारी सीजन से लेकर महिने के आखरी में यातायात के नाम पर वसूली का मामला हो जनप्रतिनिधि खामोश है।
पुलिसिया आतंक को सरकार का इस तरह से समर्थन और अपराधियों को संरक्षण ने राजधानी को अपराध गढ़ बना दिया है। विवदास्पद पुलिस वालों को संविदा देकर सरकार ने क्यया साबित किया है वह तो वही जाने लेकिन राजधानी के एस पी ओपी पॉल का 6 माह की छूट्टी का आवेदन यह साबित करने के लिए काफी है कि भाजपा सरकार की मंशा क्या है।
बिलासपुर के तत्कालीन एसपी राहुल शर्मा के अपराधी क्यों छुट्टी घूम रहे हैं और जब सत्ता में नहीं थी तब जिन पुलिस वालों का जुलूस निकालकर कार्रवाई की मांग की जा रही थी वे पुलिस वाले क्यों महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं यह समझा जा सकता है।
अपराध गढ में तब्दिल होते राजधानी में पुलिसिया व्यवहार को लेकर अधिकारियों का प्रवचन सतत जारी है लेकिन महिना वसूलने में माहिर थाने दारों पर कार्रवाई की बजाय कमीशन लेने की परम्परा ने इस शांत प्रदेश को अशांत जरूर कर दिया है।

ये कैसा न्याय, कैसी सरकार...


कहने को तो लोकतंत्र में जनता की सरकार है पर क्या यह सच है। जनता की आवाज को कुचलने का कुचक्र नहीं हो रहा है। लोकतंत्र के संबैधानिक ढांचे को तोडऩे की कोशिश नहीं हो रही है। आज नेता के नाम से लोगों की जुबानं वजह उनकी अपनी करतूत है।
प्रदेश की हो या देश की। सरकार कहीं की भी हो सत्ता का दंभ साफ दिखाई दे रहा है। लोक लाज के मायने बदल गये हे तभी तो अपराधियों को संसद और विधानसभा में रोकने के पवित्र फैसले के खिलाफ adhyades. लाया gaya। सरकार इस पर चर्चा कराने तक से बच रही है। न्याय मंदिर के एक पवित्र फैसले को लात मारने की कोशिश लोकतंत्र को कहां ले जायेगी। इसके दुष्परिणाम को कौन भुगतेगा! यह तो समय के बाद ही पता चलेगा लेकिन इसके परिणाम गलत हो होगा यह साफ दिखाई दे रहा है।
लोकपाल बिल से लेकर आरटीआई कानून में राजनैतिक दलों को शामिल करने का मामला हो या अपने वेतन भत्ते या दूसरी सुविधाओं का मामला हो। सभी पार्टियां अपने हितों के लिए एक हो रही है। आम आदमी मरे या जिये उन्हें कोई सरोकार नहीं है। मिल बैठकर देश को लुटने की साजिश और अपनी सात पीढिय़ों की व्यवस्था में लगे लोग शायद ये भूल गये है कि इन सबसे उपर भी कोइ्र है जो बेआवाज लाढी से सब कुछ ठीक कर देगा।
देश की सरकार की करतूतों पर प्रहार करने वाली भाजपा छत्तीसगढ़ में सरकार बनी बैठील है। क्या उनकी करतूत कांग्रेस से कम है। भटगांव कोल ब्लॉक की कालिख का मामला हो या उद्योग को रोगदा बांध बेचने का मामला हो। उद्योगों के लिए जमीन छिनने का मामला हो या दूसरे हिस्सों की सुविधा छिन अपने बंगले या नई राजधानी पर करोड़ों अरबों खर्च करने का मामला हो। भयावह भ्रष्टाचार और भयावह नक्सली हमले क्या नहीं हो रहा है प्रदेश में। क्या यह सब बहुमत के दम पर नहीं हो रहा है।
भ्रष्टाचार में गले तक ढुबे अधिकारियों को अपनी गोद में सरकार नहीं बिठा रखी है। बाबूलाल अग्रवाल से लेकर न जाने कितने अधिकारी है जिन पर कार्रवाई लंबित रख कर महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया गया है। ईमानदार माने जाने वाले अधिकारियों को प्रताडि़त करने की नई परम्परा शुरू की गई है। बिलासपुर के तत्कालीन पुलिस कप्तान राहुल शर्मा की हत्या (?)का मामला हो या राजधानी के पुलिस कप्तान का 6 माह के लिए छुट्टी पर जाने के आवेदन का मामला हो। कहां न्याय हो रहा है।
न्याय तो मुख्य सचिव सुनील कुमार के सीबीआई जांच के मामले की भी नहीं हो रही है। न्याय तो नक्सलियों से जनप्रतिनिधियों से संबंधो पर भी नहीं हो रही है। बहुमत के दम पर अपराधियों को खुले आम संरक्षण दिया जा रहा है। पत्रकारों पर हमले करने वालों में से एक सचिन मेघानी का सार्वजनिक सम्मान कर यदि सरकार यह सोचती है कि वह हैट्रिक भी मार लेगी तो वह गलत इसलिए नहीं सोचती क्योंकि वे लोग हैं भी इसी लायक ? यदि जैन मूतिर्यों के आरोपी को संरक्षण देने के बाद भी जीत का रास्ता देखा जाता है तो इसकी वजह साफ है कि सत्ता में दम है। तभी तो अन्ना हजारे का आन्दोलन प्रबल जनसमर्थन के बाद भी फिस्स हो गया। और अरविन्द केजरीवाल को सत्ता का रास्ता चुनना पड़ रहा है।

रविवार, 29 सितंबर 2013

समय होत बलवान्...



चुनाव के पहले न तो राजनैतिक दलों की अकुलाहट नई है और न ही प्रशासनिक अमलों का बदलता रूख ही नया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में हैट्रिक में जुटी रमन सरकार के मंत्रियों और मुख्य सचिव सुनील कुमार के बीच टकराहट की खबर सुर्खियों में आना जरूर नया है।
कोयले की कालिख से लेकर इंदिरा बैंक घोटाले के नार्को सीडी तक भ्रष्टाचार में डुबी रमन सरकार ने जब सुनील कुमार को मुख्यसचिव  बनाया था तभी से यह साफ दिखने लगा था कि सरकार सुनील कुमार के ईमानदार चेहरे की सामने रखकर सत्ता की तीसरी पाटी खेलना चाह रही है। भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देने ओर ईमानदार अधिकारियों को किनारे लगाकर प्रशासनिक आतंक फैलाने की जो छवि जनता पर बैठ रही है उससे भी दूर भागने की कोशिश हो रही है। लेकिन सब कुछ निरर्थक साबित होने लगा। कोल ब्लॉक मामले में सुनील कुमार की पहली झड़प मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से होने की चर्चा भले ही परवान नहीं चढ़ी हो पर समय-समय पर यह चचा जरूर गर्म रही कि मंत्रियों क नाराजगी मुख्यसचिव से बए़ते जा रही हे।
ताजा मामला सुनील कुमार द्वारा अपने खिलाफ लगे आरोपों पर सीबीआई जांच की मांग की है। अपनी ईमानदार छवि के लिए पहचाने जाने वाले सुनील कुमार की इस मांग से पूरी सरकार सांसद में आ गई। क्योंकि फर्नीचर खरीदी में अनियमितता तो हुई है और सीबीआई जांच कराने का मतलब सरकार की बदनामी के सिवाय कुछ नही है। कांग्रेस ने भले ह इस मामले को राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया हो पर सुनील कुमार के रूख से सरकार के उन मंत्रियों की दिक्कत बढ़ गई जो स्वयं को ईमानदार मानते है।
भले ही मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मंत्रियों आई अधिकारियों के बीच तत्तकालीन टकराव को टाल दिया हो पर सच तो यह है कि इससे सरकार की जितनी किरकिरी होनी थी हो चुकी। इधर इस पूरे घटनाक्रम पर राजनैतिक विश्वेषको की अलग ही नजरिया है। सुनील कुमार की छवि न केवल ईमानदार की रही है बल्कि सरकारी खर्चों पर मितव्ययता को लेकर भी वे मिसाल माने जाते हैं।
दूसरे आईएएस डीपी  मिश्रा की छवि भी ईमानदार अधिकारियों की रही है ऐसे में दोनों के खिलाफ जिस तरह से मंत्रियों क रूख रहा । भले ही वह शासकीय सेवा शर्तो के प्रतिफूल रहा हो पर इससे सरकार की छवि पर असर पड़ेगा।
तीसरी पार्टी की अकुलाहट और चुनावी सर्वेक्षण से भाजपा की राह कठिन है ऐसे अधिकारियों का रवैया साफ कह रहा ह ै कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं हो रहा है। वैसे भी सबको आचार संहिता का इंतजार है और आचार संहिता लगने के बाद ही अधिकारियों का रूख देखकर ही कुछ कहा जा सकता है। लोकतंत्र में आम धारणा है कि सरकार का चुनाव में क्या होगा यह सबसे पहले शासकीय सेवक मांप जाते है।
फिर समय का इंतजार किसे नहीं रहता। समय के आगे किसका जोर चलताह है। अर्जुन जैसे धर्नुधारी भी भीलों को गोपियों को ले जाने से नहीं रोक पाया ािा। ऐसे में न तो मुफ्त की बंदर बांट काम आती है और न ही भ्रष्ट पैसों की ताकत ही कुछ कर पाती है।

शनिवार, 28 सितंबर 2013

राजनेताओं से बढ़ते नक्सली संबंध !



भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष शिवदयाल सिंह तोमर की हत्या करने वाले नक्सलियों में से एक लिंगा उर्फ विजय ने दावा किया है कि वे दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी के न केवल रिश्ते में भांजा है बल्कि वे विधायक से कई बार मिल चुके हैं। हालांकि विधायक ने रिश्तेदारी से इंकार किया है लेकिन इस तरह के आरोप प्रदेश सरकार के मंत्री हम विक्रय उसेंडी और सुश्री लता उसेंडी पर लगते रहे हैं। नक्सलियों को लेकर भाजपा सरकार पर भी सांठगांठ का आरोप नया नहीं है।
बस्तर के 12 सीट में से 11 सीट पर जीत फतह कर दो बार सत्ता में पहुंची भाजपा पर नक्सली सांठ गांठ का आरोप कांग्रेस प्रांरभ से ही लगाते रही है और झीरम घाटी में दिग्गज कांग्रेस वीसी शुक्ल, नंदकुमार पटेल की नक्सली हत्या पर तो कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने मुखिया के ब्रम्हास्त्र छोड़े जाने तक की बात कह दी थी।
छत्तीसगढ़ के 18 जिले नक्सलियों से प्रभावित है और हाल के सालों में नक्सली घटना में तेजी आई है। तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन की रिहाई को लेकर हुई सौदेबाजी से सरकार पर गंभीर आरोप लगे हैं।
ऐसा नहीं है कि आरोपों के जद में सिर्फ भाजपा और उसके नेता ही है बल्कि कांग्रेस पर तो नक्सली आन्दोलन को फलने-फूलने का अवसर देने का आरोप भाजपा लगाते रही है। बढ़ते नक्सली बरदात पर भाजपा सरकार असहाय है और वह सारा ठिकरा कांग्रेस पर मढ़ते रही है।
सच तो यह है कि हाल के वर्षों में नक्सली वारदातों में तेजी आई है बस्तर में लगभग पांच सौ गांव उजड़ गये है और यहां रहने वाले हजारों लोग किश्विर में रहने मजबूर है। लेकिन सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ कभी बड़ी कार्रवाई की हिम्मत नहीं दिखाई।
बस्तर में पुलिस हताशा की ओर है। राजनैतिक दबाव में पुलिस कार्रवाई नहीं कर पा रही है और नक्सलियों के खिलाफ आन्दोलन कबड़ा करने वालों का सरकार ने भी साथ नहीं दिया। सलवा जुडूम आन्दोलन की असमय मौत से रमन सरकार कटघरे में है। ऐसे में यदि यह चर्चा वोटों पर है कि बस्तर में बगैर नक्सलियों से संबंध बनाये कोई नेता गिरी नही कर सकता तो यह सरकार के लिए ही नही राजनैतिक दलों के लिए भी न केवल चुनौति है बल्कि आम आदमी के लिए गंभीर बात है।
हम यहां रमन सरकार के नक्सली मोर्चे पर कई नाकामी की चर्चा नहीं करना चाहते हम तो सिर्फ   यहां नक्सलियों से नेताओं के बढ़ते संबंधों पर ही चिंता जाहिर करना चाहते है। राजनीति में सत्ता के लिए अपराधियों का सहारा लेने की वजह से आज विधानसभा और संसद की पवित्रता पर ग्रहण लग चुका है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर राजनैतिक दलों ने जिस एका से अपराध की नई परिभाषा गढ़ी है वह न केवल शर्मसार करने वाला है बल्कि स्वेच्छाचारिता का शर्मनाक उदाहरण भी है।
आज एक आम आदमी अपनी सुरक्षा के लिए बढ़ते अपराध से स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहा हो तब भला सरकार या राजनैतिक दलों के द्वारा समाज या देश विरोधियों से संबंध रखना निंदनीय ही नहीं शर्मसार करने वाला है। हम ऐसे किसी भी संबंधो के खिलाफ है जो आम आदमी के हितों पर कुढाराघात करता हो।
विधायक भीमा मंडावी की रिश्तेदारी या मेल मुलाकात की सरकार को ही उच्च स्तरीय जांच करानी चाहिए अन्यथा नक्सली बढ़ते रहेंगे और लोग भेड़ बकरी की तरह कटते रहेंगे।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

सांप-छुछुंदर का खेल...


छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनाव में भले ही कांगे्रस और भाजपा सत्ता के लिए जोड़ तोड़ में लग गये हो पर सच तो यह है कि दोनों ही दलों के लिए राह आसान नहीं है। स्वाभिमान मंच की बढ़ती ताकत से उन्हें भीतर तक हिला दिया है। सत्ता के लिए जादुई आंकड़े 46 पाना न तो भाजपा के लिए आसान है और न ही कांग्रेस के लिए ही आसान है।
प्रदेश के मुखिया रमन सिंह के लिए मुश्किल तभी से शुरू हो गया था जब भटगांव कोल ब्लॉक की कालिख भाजपा के तत्कालिन अध्यक्ष नीतिन गडकरी के चहेते संचेती ब्रदर्स के जटिये उन तक पहुंचने लगा था। भाजपा भले ही अपने मुखिया को साफ सुधरा बताये लेकिन कोल ब्लॉक कालिख से वह बच नहीं सकी है। रोगदा बांध एक उद्योग को बेचने के मामले में भी वह जनता के सामने निरूत्तर है जबकि इंदिरा बैंक घोटाले की नार्को सीडी ने तो सरकार के सभी दमदार मंत्रियों पर कालिख पो ही दी। भले ही सरकार हैट्रिक के सपने देख रही हो। सुराज से लेकर विकास का दावा कर रही हो पर सच तो यह है कि प्रशासनिक आतंक और भ्रष्टाचार से आम आदमी त्रस्त है।
किसानों की जमीनों को लेकर सरकार के दो मुंहे रवैये से जहां किसान नाराज है यहीं आरक्षण कटौति को लेकर सतनामी समाज की नाराजगी खुलकर सामने आ गई है। भाजपा की गुटबाजी भी सतह तक पहुंच गई है ऐसे में सिर्फ नरेन्द्र मोदी के सहारे सत्ता का सपना कैसे पूरा होगा कहना कठिन है।
कांग्रेस की गुटबाजी और अंर्तकलह के चलते कांग्रेस की राह भी मुश्किल हो गई है। उपर से रमन सरकार से नूरा कुश्ती और सेंटिंग की खबर ने आम कार्यकर्ताओं को हताशा के सिवाय कुछ नहीं मिल रहा है। जीरम घाटी से लेकर नार्को सीडी और संचेती से लेकर अदानी ग्रुप के मामले में कांग्रेस आक्रामक होने से बाचती रही है। अपनी सीट के चक्कर में सरकार से सौदे की खबर ने छोटे व नये टिकिटार्थीयों की राह कठिन कर दिया है। हालत यह है कि जोगी-वोरा-महंत, चौबे और न जाने कितने गुटों में बंटी कांग्रेस सरकार के करतुतों पर जुबान खोलने की बजाय आपस में ही विष दमन में मशगुल है।
भाजपा और कांग्रेस क इसी करतुत के चलते छत्तीसगढ़ में तीसरी ताकत को समर्थन मिलने लगा है। पहले से ही दो सीटों पर कब्जा जमाने वाली बसपा ही नहीं स्वाभिमान मंच को भी लोगों को जबरदस्त समर्थन मिलने लगा है। स्वाभिमान मंच का दावा है कि सत्ता की चाबी उसके पास ही रहेगी और वह कांग्रेस भाजपा को 30-30 सीटों से आगे नहीं बढऩे देगी ऐसे में बसपा ने भी अपनी सीटें बढ़ा ली तो कांग्रेस भाजपा की राह कठिन हो जायेगी।
वैसे भी जिस तरह से आरटीआई कानून, अपराधियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस और भाजपा ने एका दिखाई है उससे नये राजनैतिक हालात बन रहे है। अब तो आम लोग भी कहने लगे है चोर-चोर मौसेटे भाई...!