छत्तीसगढ़ विधानसभा में विधायक श्याम सुंदर दास महंत के अपने क्षेत्र के अस्पतालों की दुर्दशा पर जब स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल निरूत्तर होने लगे तो उन्होंने भले ही बहस खतम करने अस्पताल बंद कर देने की धमकी दी हो लेकिन सच तो यह है कि पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है। निजी अस्पतालों की लूट का यह आलम है कि वे स्लाटर हाऊस में तब्दिल होते जा रहे हैं और इसकी वजह रमन सरकार की सरकारी अस्पतालों के प्रति बेसाखीे है।
रमन सरकार जानबुझकर निजी अस्पतालों को फायदा पहुंचाने सरकारी अस्पतालों को बरबाद कर रही है या नहीं यह तो वही जाने लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि यहां स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बदतर हो चुकी है।
अस्पताल के नाम पर केवल कहीं कहीं भवन है न डाक्टर है और न ही दवाईयां हैं। सरकारी डाक्टरों के निजी प्रेक्टिस की बात हो या जेनेटिक दवाईयॉ का मामला सरकार की नीति पूरी तरह फेल हो चुकी है। सरकार के लिए इसस शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि वह डाक्टर नहीं मिलने की बात स्वीकार करने से भी परहेज नहीं करती।
राजधानी के मेकाहारा और जिला अस्पताल में जब डाक्टरों की कमी नहीं दूर हो रही है तब दुरस्थ अंचलों में क्या हाल होगा यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
हम रमन सरकार से स्पष्ट कर दें कि सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों की यदि कमी है तो इसके लिए वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते करीना कपूर को नचाने या नई राजधानी में एशो आराम की सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने या अपने वेतन-भत्ते बढ़ाने में परहेज नहीं करने वाली सरकार आखिर डाक्टरों की नियुक्ति में आकर्षक पैकेज की घोषणा क्यों नहीं करना चाहती। आखिर सरकार सर्वसुविधा युक्त अस्पताल हर जिला मुख्यालय में क्यों नहीं खोलना चाहती।
निजी डाक्टरों के गर्भाशय कांड, स्मार्ट कार्ड घोटाले पर वह दोषी डाक्टरों की प्रेक्टिस पर रोक क्यों नहीं लगाती। निजी डाक्टरों की लूट रोकने कड़े नियम क्यों नहीं बनते?
ऐसे कितने ही कारण गिनाये जा सकते हैं जो सरकार की नियत पर उंगली उठाने के लिए काफी है। सुविधाएं देंगे नहीं और अस्पताल बंद कर देने की धमकी किसे दी जा रही है?
स्वास्थ्य मंत्री से हम एक आग्रह जरूर करेंगे कि यदि वे अस्पतालों में डाक्टरों व दवाईयों का इंतजाम नहीं करवा सकते तो ऐसे अस्पताल बेंद कर ही देना चाहिए?
आखिर लोग भुलावे में क्यों रहे। सिर्फ नाम के अस्पताल से तो अच्छा है ऐसे अस्पताल न ही रहे।
हम यहां सरकार को याद दिला दें कि उनकी प्राथमिकता दो रूपये किलो चांवल बांटने तक ही नहीं है। उनकी प्राथमिकता स्वास्थ्य और शिक्षा भी है ओर इन दोनों ही मामलों में सरकार के रवैये की वजह से निजी संस्थानों ने न केवल लूट मचा रखी है बल्कि वे स्लाटर हाऊस में तब्दिल होने लगे है।
सरकार से हमारा यह भी आग्रह है कि वे अस्पतालों में डाक्टरों की नियुक्ति के लिए आकर्षक पैकेज दे ताकि उनका ध्यान निजी प्रेक्टिस की तरफ न जाए। आखिर देश में ऐसे कई संस्थान आज भी चल रहे हैं जहां काम करने वाले डाक्टर अपनी संस्थान के अलावा बाहर प्रेक्टिस नहीं करते? सरकार को लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए कड़े नियम बनाने चाहिए। अस्पताल बंद कर देने की धमकी कहीं से भी उचित नहीं है।
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