बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

सत्ता का दंभ


कहते है सत्ता आदमी को पागल कर देता है तो किसी को इतना दंभी बना देता है कि वह अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता । आजकल छत्तीसगढ़ में यही सब हो रहा है । सत्ता का असर कई भाजपाईयों में परवान चडऩे लगा है । कुर्सी पाते ही अनाप-शनाप कमाई के फेर में पड़े भाजपाईयों के लिए कानून व्यवस्था खेल बन कर रह गया है । हर हाल में पैसा कमाने की होड़ मची हुई है । और अदना सा कार्यकर्ता भी नियम कानून को हाथ में लेने से परहेज नहीं करता ।
यही वजह है कि पिछले दिनों राजनांदगांव के सांसद मधुसूदन यादव के प्रतिनिधि ने खनिज इंस्पेक्टर की सिर्फ इसलिए अपहरण कर पिटाई की क्योंकि उसने उसने अवैध खनिज परिवहन को पकड़ा था । ऐसा नहीं है कि सत्ता के दंभ पर किसी भाजपाईयों ने पहली बार ऐसा किया हो इससे पहले भी भाजपाई घपले बाजी को पकडऩे वाले अधिकारियों के साथ सार्वजनिक दुव्र्यवहार होता रहा है । चर्चा है कि शशिमोहन सिंह जैसे पुलिस अधिकारी के साथ तो एक मंत्री ने सीएम हाऊस में ही सिर्फ इसलिए दुव्र्यवहार किया था क्योंकि उन्होंने मिठाई में नकली खोवा मिलाने वाले एक भाजपाई के गिरेबान में हाथ डाल दिया था ।
सत्ता के दंभ का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि राजधानी के कई नामी-गिरामी अपराधी बड़े-बड़े मंत्रियों के नाक के बाल बने हुए है । जिस प्रदीप गांधी को संसद में सवाल पूछने के एवज में बर्खास्त कर दिया गया हो वह मुख्यमंत्री के साथ कार्यक्रमों में हिस्सा ले और पार्टी में महत्वपूर्ण ओहदा दिया जाए सत्ता का दंभ नही तो और क्या है ।
ऐसा नहीं है कि सत्ता का दंभ केवल भाजपा में ही दिखाई पड़ता है क्रंाग्रेस में भी यही स्थिति है । बड़े पदों पर बैठे नेता अपने पद का प्रभाव बखूबी दिखाते है और ऐसे लोगों से गलबहियां करने से परहेज नहीं करते जिसकी वजह से पार्टी की छवि खराब हो सकती है ।
लेकिन आज छत्तीसगढ़ में सत्ता में भाजपा बैठी है इसलिए हम केवल इसी पर चर्चा कर रहे हैं क्रंाग्रेस के दंभ की चर्चा फिर कभी किया जायेगा ।
सत्ता के दंभ की वजह से ही छत्तीसगढ़ में राजनैतिक सूचिता को जमींदोज किया गया और प्रशासनिक आतंकवाद के आरोपों को सिरे से नकार दिया जाता है । रोगदा बांध बेचे जाने के मामले को बहुमत के आधार पर किलन चिट देना या 49 प्रतिशत शेयर के बाद भी संचेती की कंपनी को एम डी का पद देना क्या सत्ता का दंभ नहीं है । भ्रष्ट लोगों को संविदा देकर नौकरी पर वापस रखना और ईमानदारों को प्रताडि़त करना भी सत्ता का दंभी प्रवृति है । छत्तीसगढ़ में यह चरम पर है । कई अधिकारी आत्महत्या जैसे कदम उस चुके है जबकि कई अधिकारी छत्तीसगढ़ से चले जाने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं ।
आखिर चुनावी साल में सरकार क्या साबित करना चाहती है यह तो वही जान लेकिन सत्ता का दंभ कभी भी लंबे समय तक नहीं चला है । खासकर छत्तीसगढ़ के शांत प्रिय जनता को यह कभी रास नहीं आया हे । सत्ता के दम पर अपनी दूकान चलाने वालों को जनता ने ऐसा मजा चखाया है कि वे आज भी इससे उबर नहीं पाये हैं ।
इसी प्रदेश में ऐसे कई कांग्रेसी हैं जिनकी एक जमाने में तूती बोलती थी लेकिन आज वे अपना चुनाव तक नहीं जीत पाते । हम याद दिलाया चाहते हैं कि जब रावण का दंभ नहीं टिक पाया तो फिर किसका दंभ टिक पायेगा । यदि भाजपा वास्तव में हैट्रिक करना चाहती है तो उसे ऐसे दंभी लोगों को किनारे करना होगा । सत्ता का दंभ पर मनमानी को कोई बर्दाश्त नहीं करता और कालिख पूते चेहरे कभी भी अच्छे नहीं लगते । भले ही अपना प्रोडक्ट बेचने दाग अच्छे है का थीम हिट हो जाए लेकिन दाग कभी अच्छे नहीं लगते । यह कटु सच्चाई है और इसे नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए ।

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

सत्ता से समृद्धि...


कभी राजनीति समाज सेवा का सबसे सशक्त माध्यम हुआ करता था । सादा जीवन उच्च विचार के मूलमंत्र से अभिभूत राजनीति में आने वाले की सेवा भाव देखते ही बनती थी । कांग्रेस हो या भाजपा, समाजवादी हो या कम्यूनिष्ट सबके लिए समाज सेवा प्रथम लक्ष्य रहा । ऐसे कितने ही उदाहरण रहे जब इस देश में नेताओं ने राजनैतिक सुचिता के लिए सत्ता की कुरसी को लात मारने से भी परहेज नहीं किया । खुद छत्तीसगढ़ में बैठी रमन सरकार की पार्टी में ही अटल-आडवानी से लेकर कई नाम लोगों को जुबानी याद हैं जिन्होंने राजनैतिक सुचिता के लिए अपना सब कुछ होम कर दिया । लेकिन क्या अब इसी पार्टी में ऐसा हो रहा है । भाजपा ही क्यों किसी भी पार्टी में ऐसा नहीं हो रहा है । अपराधियों को संरक्षण से लेकर खुद भ्रष्टाचार में डुबे लोग सत्ता का केन्द्र बने हुए है और ऐसे लोग बड़ी बेशर्मी से राजनैतिक सुचिता, ईमानदारी की बात करते नहीं थकते ।
सत्ता के साथ बुराई के घालमेल को स्वाभाविकता की चासनी में पिरोने में भी किसी को शर्म नहीं आती और न ही अपने लिए समृद्धि का टापू बनाने से ही इन्हें कोई दिक्कत होती है । तभी तो छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में शिक्षा-स्वास्थ के अभाव को नजर अंदाज कर नई राजधानी के नाम पर समृद्धि का टापू खड़ा कर दिया जाता है । इस टापू के एक-एक रास्ते के लिए रोशनी का ऐसा इंतजाम किया जाता है ताकि बिजली विहिन गांव की तरफ कभी ध्यान ही न जाए ।
मंत्रियों व अधिकारियों के बैठने के कमरों की भव्यता इतनी बढ़ा दी जाती है कि एक आम आदमी इस चकाचौंध में अपनी पीड़ा व्यस्त करने की हिमामत न कर सके ।
इस भव्यता पर गांधी के विचार पर चलने वाले कांग्रेसियों को भी इसलिए फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे भी कतार में है ।
ऐसे में राजनीति समाज सेवा का माध्यम की बजाय कार्पोरेट सेक्टरों की भव्यता की तरह व्यवसाय का जरिया बन गया हो तो भला किस पार्टी को आपत्ति होगी ? क्योंकि दूकानें तो किसी न किसी की चलनी ही है और जनता ही ठगी जायेगी । इस राजधानी ने ऐसे बहुत से लोगों को राजनीति में आते ही करोड़ पति अरबपति बनते देखा है जिनकी औकात दो कौड़ी की भी नहीं रही । जिनके घर दो टाईम का चूल्हा बमुश्किल से जलता था वे आज इस शहर के दान दाता बने है । जिनके खुद के मकान नहीं थे वे सैकड़ो एकड़ के मालिक है और जिनकी औकात एक पाव पीने की नहीं थी ओर आधा पाव का पैसा मिलाने शाम से ही टकटकी लगाए बैठे होते थे वे आज सबसे महंगी शराब ही नही पिलाते बल्कि अपने बेटे की शादी भी इतनी भव्यता से करते है कि सब देखते रह जाए ।
सत्ता से आई इस समृद्धि का यह सफर राजनीति को किस मुकाम तक ले जायेगा यह तो पता नहीं लेकिन एक बात तय है कि जनता की हाय लेकर की गई कमाई का एक बड़ा हिस्सा या तो बिगडै़ल औलाद उड़ा देते हें या फिर डाक्टर ले जाते हैं ।
जियो और जीने दो की संस्कृति से ओत प्रोत छत्तीसगढ़ में राज्य बनते ही जो परिवर्तन आया है उसकी कल्पना किसी ने नहीं की रही होगी । सत्ता से आ रही समृद्धि ने संवेदनहीनता को तो बढ़ाया ही हैे नैतिकता और राजनैतिक सुचिता पर भी चोंट की हैे ।
बेलगाम नौकर शाह और बढ़ते भ्रष्टाचार ने इस नये नवेले राज्य के विकास में रोड़ा अटका रहे हैं तो इसकी वजह जनप्रतिनिधियों की तामसी प्रवृति है जो वातानुकूलित कक्ष से ऐसे बुनियाद रखना चाहती है जिसका रास्ता विकास नहीं विनाश की ओर जाता है । क्या भाजयुमों के युवा सम्मेलन में समृद्धि का तामझाम सत्ता के रास्ते से नहीं आया है । और सत्ता की समृद्धि से विकास की सोच नहीं खुद की एय्याशी का बंदोबस्त ही होता है...