कहते है सत्ता आदमी को पागल कर देता है तो किसी को इतना दंभी बना देता है कि वह अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता । आजकल छत्तीसगढ़ में यही सब हो रहा है । सत्ता का असर कई भाजपाईयों में परवान चडऩे लगा है । कुर्सी पाते ही अनाप-शनाप कमाई के फेर में पड़े भाजपाईयों के लिए कानून व्यवस्था खेल बन कर रह गया है । हर हाल में पैसा कमाने की होड़ मची हुई है । और अदना सा कार्यकर्ता भी नियम कानून को हाथ में लेने से परहेज नहीं करता ।
यही वजह है कि पिछले दिनों राजनांदगांव के सांसद मधुसूदन यादव के प्रतिनिधि ने खनिज इंस्पेक्टर की सिर्फ इसलिए अपहरण कर पिटाई की क्योंकि उसने उसने अवैध खनिज परिवहन को पकड़ा था । ऐसा नहीं है कि सत्ता के दंभ पर किसी भाजपाईयों ने पहली बार ऐसा किया हो इससे पहले भी भाजपाई घपले बाजी को पकडऩे वाले अधिकारियों के साथ सार्वजनिक दुव्र्यवहार होता रहा है । चर्चा है कि शशिमोहन सिंह जैसे पुलिस अधिकारी के साथ तो एक मंत्री ने सीएम हाऊस में ही सिर्फ इसलिए दुव्र्यवहार किया था क्योंकि उन्होंने मिठाई में नकली खोवा मिलाने वाले एक भाजपाई के गिरेबान में हाथ डाल दिया था ।
सत्ता के दंभ का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि राजधानी के कई नामी-गिरामी अपराधी बड़े-बड़े मंत्रियों के नाक के बाल बने हुए है । जिस प्रदीप गांधी को संसद में सवाल पूछने के एवज में बर्खास्त कर दिया गया हो वह मुख्यमंत्री के साथ कार्यक्रमों में हिस्सा ले और पार्टी में महत्वपूर्ण ओहदा दिया जाए सत्ता का दंभ नही तो और क्या है ।
ऐसा नहीं है कि सत्ता का दंभ केवल भाजपा में ही दिखाई पड़ता है क्रंाग्रेस में भी यही स्थिति है । बड़े पदों पर बैठे नेता अपने पद का प्रभाव बखूबी दिखाते है और ऐसे लोगों से गलबहियां करने से परहेज नहीं करते जिसकी वजह से पार्टी की छवि खराब हो सकती है ।
लेकिन आज छत्तीसगढ़ में सत्ता में भाजपा बैठी है इसलिए हम केवल इसी पर चर्चा कर रहे हैं क्रंाग्रेस के दंभ की चर्चा फिर कभी किया जायेगा ।
सत्ता के दंभ की वजह से ही छत्तीसगढ़ में राजनैतिक सूचिता को जमींदोज किया गया और प्रशासनिक आतंकवाद के आरोपों को सिरे से नकार दिया जाता है । रोगदा बांध बेचे जाने के मामले को बहुमत के आधार पर किलन चिट देना या 49 प्रतिशत शेयर के बाद भी संचेती की कंपनी को एम डी का पद देना क्या सत्ता का दंभ नहीं है । भ्रष्ट लोगों को संविदा देकर नौकरी पर वापस रखना और ईमानदारों को प्रताडि़त करना भी सत्ता का दंभी प्रवृति है । छत्तीसगढ़ में यह चरम पर है । कई अधिकारी आत्महत्या जैसे कदम उस चुके है जबकि कई अधिकारी छत्तीसगढ़ से चले जाने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं ।
आखिर चुनावी साल में सरकार क्या साबित करना चाहती है यह तो वही जान लेकिन सत्ता का दंभ कभी भी लंबे समय तक नहीं चला है । खासकर छत्तीसगढ़ के शांत प्रिय जनता को यह कभी रास नहीं आया हे । सत्ता के दम पर अपनी दूकान चलाने वालों को जनता ने ऐसा मजा चखाया है कि वे आज भी इससे उबर नहीं पाये हैं ।
इसी प्रदेश में ऐसे कई कांग्रेसी हैं जिनकी एक जमाने में तूती बोलती थी लेकिन आज वे अपना चुनाव तक नहीं जीत पाते । हम याद दिलाया चाहते हैं कि जब रावण का दंभ नहीं टिक पाया तो फिर किसका दंभ टिक पायेगा । यदि भाजपा वास्तव में हैट्रिक करना चाहती है तो उसे ऐसे दंभी लोगों को किनारे करना होगा । सत्ता का दंभ पर मनमानी को कोई बर्दाश्त नहीं करता और कालिख पूते चेहरे कभी भी अच्छे नहीं लगते । भले ही अपना प्रोडक्ट बेचने दाग अच्छे है का थीम हिट हो जाए लेकिन दाग कभी अच्छे नहीं लगते । यह कटु सच्चाई है और इसे नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए ।